Monday, October 4, 2010

अयोध्या मसले पर फ़ैसला: एक इतिहासकार का परिप्रेक्ष्य - - रोमिला थापर


यह फैसला एक राजनीतिक आदेश है और एक निर्णय के रूप में यह दर्शाता है की राज्य यह फैसला वर्षों पहले भी आराम से ले सकता था। यह फ़ैसला अपना ध्यान भूमि के कब्जे और नष्ट की गयी मस्जिद को हटा कर मंदिर के निर्माड पर केन्द्रित करता है. समस्या के समकालीन राजनीति में उलझे होने के साथ, इसमें धार्मिक पहचान के मसले भी शामिल थे पर इसके साथ साथ ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर होने का दावा भी किया गया है। इस आदेश मै ऐतिहासिक साक्ष्य का आह्वान तो किया गया है लेकिन बाद में फैसले के समय इसे दरकिनार कर दिया गया है. अदालत ने घोषणा की है कि यह एक विशेष स्थान है, जहां एक दिव्य या अर्द्ध दिव्य व्यक्ति पैदा हुआ था और उसके जन्म मनाने के लिए वहां एक नए मंदिर का निर्माण किया जाना है .यह हिंदू आस्था और विश्वास के द्वारा एक अपील के जवाब में है.ऐसे दावे के समर्थन में सबूतों की गैर-मौजूदगी को देखते हुए इस तरह के फैसले की उम्मीद कानून की एक अदालत से नहीं थी. हिंदु गहराई से एक देवता के रूप में राम को पूजते है लेकिन क्या यह एक जन्म स्थान और भूमि पर कब्जे के दावों पर एक कानूनी निर्णय का समर्थन कर सकते है? और क्या एक प्रमुख ऐतिहासिक स्मारक को जानबूझकर बर्बाद करके भूमि प्राप्त करने में यह मदद करेगा?

फैसले का दावा है कि यहाँ 12 वीं सदी का एक मंदिर था जिसे मस्जिद निर्माण के लिए नष्ट कर दिया गया था - इसलिए एक नए मंदिर निर्माण की वैधता स्पष्ट है.

पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई और उसकी रीडिंग को पूरी तरह से स्वीकार किया गया है हालांकि अन्य पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने जोरो से अपनी असहमति दर्ज कि। चुकी यह मसला पेशेवर् विशेषज्ञता से जुडा हुआ है और इसमे तिखी असहमति थी, ऐसे मै किसी एक राय का ,वह भी बहुत मामुली तरीके से, अपनाया जाना किसी भी रूप मै आदेश पर भरोसा करने की जमीन नही बनाता। एक जज ने कहा कि वह ऐतिहासिक पहलू में नहीं गये क्योकि वह इतिहासकार नहीं है, लेकिन बाद मै वह कहते हैं कि इतिहास और पुरातत्व पूरी तरह से इस सूट को तय करने के लिये आवश्यक नही था! जबकि मसला दावो कि ऐतिहासिकता का और पिछले एक सहस्राब्दी की ऐतिहासिक संरचनाओं का है। 

एक मस्जिद जो लगभग 500 साल पहले बनायी गयी थी और जो हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा थी उसे जानबूझकर एक राजनीतिक नेतृत्व के आग्रह पर एक भीड़ ने तोड दिया । फैसले के सारांश में इसका कोई जिक्र नहीं है कि प्रचंड विनाश के इस काम की , और हमारी विरासत के खिलाफ इस अपराध कि निंदा की जानी चाहिए। मस्जिद के मलबे के क्षेत्र में - राम का जन्मस्थान - इसके गर्भगृह मै नया मंदिर! जहा एक ओर तथाकथित मंदिर के विनाश की निंदा की है और एक नये मंदिर निर्माण के लिए औचित्य दिया गया है, वही दुसरी तरफ़् मस्जिद की तबाही कि किसी निन्दा से बचने के लिये इस मसले को शायद बहुत सुविधापूर्वक तरीके से केस के दायरे से बाहर कर दिया गया। 

एक मिसाल का बनाया जाना। 

इस फैसले ने कानून की अदालत में एक मिसाल पैदा कर दी है कि एक समूह जो अपने आप को एक समुदाय के रूप में परिभाषित करता है वह किसी स्थान को परमात्मा या अर्द्ध परमात्मा जिसकी वह पूजा करता है के जन्मस्थान होने की घोषणा करके जमीन पर दावा कर सकता है। अब कई ऐसे जन्मस्थल हो सकते हैं जहा उपयुक्त संपत्ति को पाया जा सकता है या एक आवश्यक विवाद निर्मित किया जा सकेगा. जब् ऐतिहासिक स्मारकों के विनाश कि निन्दा नही कि गयी तब् दुसरे स्मारकों का विनाश करने से लोगो को कौन सी चीज रोकेगी? पूजा के स्थानों की स्थिति बदलने के खिलाफ १९९३ मै आये विधान को हमने देखा है कि, हाल के वर्षों में वह काफी अप्रभावी हो कर रह गया है। 

जो इतिहास में हुआ, हुआ.वह अब बदला नहीं जा सकता. लेकिन हम जो हुआ उसे संपूर्ण संदर्भ में समझ सकते है और विश्वसनीय सबूत के आधार पर इसे देखने का प्रयास कर सकते हैं.वर्तमान की राजनीति का औचित्य साबित करने के लिये हम् अतीत को नहीं बदल सकते हैं. यह फैसला इतिहास के प्रति सम्मान को रद्द कर उसे धार्मिक विश्वास के साथ बदलने का प्रयास है. असल मायने मै सुलह तब् ही आ सकती जब यह भरोसा पैदा हो कि इस देश में कानून सिर्फ़ आस्था और विश्वास पर ही नहीं बल्कि सबूतों पर आधारित है। 

(रोमिला थापर प्राचीन भारत के एक प्रतिष्ठित इतिहासकार है.)

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