Monday, August 1, 2011

दिल्ली में पानी के निजीकरण का विरोध करो !

दिल्ली में पानी के निजीकरण का विरोध करो !
हरेक निवासी के लिए पानी का समान बंटवारा सुनिश्चित करो !

क्या आप जानते हैं ?

- दिल्ली जल बोर्ड में पिछले दिनों 200 करोड़ रूपए का घोटाला पकड़ा गया। पूर्वी दिल्ली भागीरथी वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लान्ट के निर्माण में कम्पनियों को ठेका देने को लेकर हुए इस घोटाले की जांच के लिए कमेटी भी बिठायी गयी है।

- दिल्ली शहर में ही पानी का खुल्लमखुल्ला असमान बंटवारा चलता है। कुछ इलाकों के रईसों को रोजाना 450 लीटर पानी मिलता है जबकि इस शहर के 50 लाख लोगों को प्रतिदिन चालीस लीटर से कम पानी में गुजारा करना पड़ता है।

- दिल्ली सरकार खुद कहती है कि जलबोर्ड केवल 50 फीसदी पानी का ही राजस्व/रेवेन्यू वसूल पाता है। 

- दिल्ली ष्शहर की अच्छी खासी आबादी को पानी के लिए निजी टेकरों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

दोस्तों,

प्रकृति की देन पानी के व्यापार की योजना बनी है। दिल्ली सरकार अब पानी के क्षेत्रा को निजी कम्पनियों के हाथों सुपूर्द करने जा रही है। हर निवासी को पानी देने में हुई अपनी नाकामी पर परदा डाले रखने के लिए यही आसान तरीका उसने ढंूढ निकाला है।

मालूम हो कि पानी पर सभी लोगों का अधिकार सबसे अहम है। और सभी लोगों को उनकी बुनियादी जरूरतों के लिए पानी की न्यूनतम मात्रा मिलनी चाहिए, जो स्वच्छ हो और सुरक्षित हो, गरीब लोगों के बस में हो और उनके घरों तक आसानी से पहुंच सकता हो। दिल्ली में पानी के निजीकरण का जो सिलसिला चल पड़ा है, उसके तहत पानी के इसी अधिकार को कमजोर किया जा रहा है।

वैसे वर्ष 2005 में ही पानी के निजीकरण की योजना सरकार ने हाथ में ली थी। पानी को शुद्ध करने के काम को, पानी के बंटवारे के काम को बड़ी बड़ी कम्पनियों को सौंपने का खाका बना था। और इन कम्पनियों के लिए करोड़ो करोड़ रूपए मुनाफे के रास्ते खोल दिए जा रहे थे। मगर उस वक्त लोगों के विरोध ने सरकार को मजबूर किया कि वह अपनी योजना को टाल दे। अब चुपचाप इस योजना पर अमल शुरू हुआ है। 

जाहिर है कि पानी के निजीकरण का सबसे पहला असर कीमतों पर दिख सकता है। महंगाई की मार से पहले से परेशान लोगों पर अब पानी के बढ़े हुए दरों की मार पड़ेगी। दो साल पहले, पुनर्वास कालोनियों में 25 गज प्लाट के लिए पानी की कीमत 52 रूपए पड़ती थी, जिसमें सीवरेज चार्ज भी शामिल रहता था। वह लगभग चार गुना बढ़ गया है और सीवरेज चार्ज भी ज्यादा देना पड़ रहा है। निजीकरण के साथ, अब कीमत को बाजार द्वारा तय किया जाएगा। इसका अर्थ यही होगा कि अगर कीमतें अचानक बढ़ायी जाती हैं, जब किन्हीं कारणों से पानी की सप्लाई प्रभावित हो, तब हमारे पास कोई चारा नहीं बचेगा। 

हर व्यक्ति को 120 लीटर पानी

दिल्ली सरकार कहती है कि दिल्ली में पानी की कमी है और इसलिए उन्हें वितरण का निजीकरण करना पड़ रहा है। पानी की बरबादी को रोकने के लिए अपने तंत्रा को ठीक करने, अपने घाटे को ठीक करने के बजाय सरकार यह रास्ता अपनाना चाहती है। 

स्थिति को सुधारने का एक न्यायपूर्ण तरीका यह है कि पानी के समान बंटवारे को सुनिश्चित किया जाए और इसलिए हर दिन प्रति व्यक्ति 120 लीटर पानी के प्रयोग की इजाजत दी जाए। सरकार चाहे तो बरसात के पानी के हार्वेस्टिंग प्रणाली के निर्माण के बारे में भी सोच सकती है। 

दोस्तों, हमें समझना होगा कि पानी के निजीकरण का सिलसिला दिल्ली में कल्याणकारी सेवाओं के निजीकरण को अंजाम देनेवाली नवउदारवादी नीतियों का ही हिस्सा है। सबसे पहले उन्होंने सार्वजनिक यातायात का अर्द्धनिजीकरण किया, जिसकी परिणति तमाम मौतों में हुई। फिर नब्बे के दशक के उत्तरार्द्ध में उन्होंने बी एल कपूर, मूलचन्द जैसे चैरिटेबल अस्पतालों को कार्पोरेट हाथों में सौंपा जिसका आघात अस्पताल कर्मचारियों से लेकर आम जनता पर हुआ। हाल के समयों में उन्होंने बिजली का निजीकरण किया। यह पूंजीवाद का तर्क है: वह हर चीज को माल बनाना चाहता है और उससे मुनाफा बटोरना चाहता है। यही सिलसिला वह पानी के साथ भी दोहरा रहे हैं।

पानी जो कि प्रकृति की देन है उसे मुनाफे की दृष्टि से देखा नहीं जा सकता। आम जनता को पानी मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है।

विरोध की आवाज बुलन्द करो

पानी के निजीकरण के खिलाफ दुनिया के अलग अलग हिस्सों में , दक्षिण अफ्रीका, कोलम्बिया आदि स्थानों पर सफल संघर्ष हुए हैं। कई सारे देश जिन्होंने पानी के निजीकरण को अंजाम दिया था, उन्हें सार्वजनिक नियंत्राण और वितरण की तरफ लौटना पड़ा है। जून माह में इटली के एक जनमतसंग्रह में पानी के निजीकरण को खारिज कर दिया गया। 

इस साल फरवरी में, कर्नाटक के अलग अलग नगरों के लोगों ने बंगलौर में एकत्रित होकर निजीकरण का विरोध किया। उनके विरोध का ही नतीजा था कि कर्नाटक सरकार को यह कहना पड़ा कि वह अमेरिकी टेªड मिशन के प्रतिनिधियों से मुलाकात भी नहीं करेगी। 

अब वक्त आ गया है कि हम एकत्रित हों और इस साझे संसाधन को निजी मुनाफे के लिए सौंपने का विरोध करें। सम्मान के साथ जीने के हमारे अधिकार का हिस्सा है सभी के लिए स्वच्छ, सुरक्षित और कम खर्च में पानी का मिलना।

मांगे

1. पानी के निजीकरण के फैसले को तुरन्त रद्द किया जाए ।
2. सभी के लिए पानी के समान बंटवारे को सुनिश्चित किया जाए ।
3. दिल्ली में पानी सप्लाई को बेहतर बनाने के लिए योजना बनायी जाए ।

पानी है सबका अधिकार, बन्द करो इसका व्यापार

पानी हक अभियान
(विभिन्न नागरिक-सामाजिक-राजनीतिक संगठनों, व्यक्तियों की साझी पहल)

जुलाई 2011

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